हे प्रभु मेरे अवगुणो को चित्त में न धरिये,
सभी प्राणी आपके लिए एक है, मुझे अपनी शरण में लीजिये,
एक लोहा पूजा थाल में भी होता और एक निर्दयी कसाई के हाथ में,
किन्तु पारस बिना भेद भाव के दोनों को ही खरा सोना में बदल देता है,
नदी नाले दोनों में पानी होता है किन्तु जब दोनों मिले तो सागर का रूप ले लेते है,
एक आत्मा एक परमात्मा, सुर दासजी श्याम ( भगवान्) से झगड़ते है ,
इस बार मुझे मायावी संसार से बचा लीजिये, मै अकेला इसे पार नहीं कर सकता.
......
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो |
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो ||
एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो |
सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो ||
एक नदिया एक नाल कहावत, मैलो नीर भरो |
जब मिलिके दोऊ एक बरन भये, सुरसरी नाम परो ||
एक माया एक ब्रह्म कहावत, सुर श्याम झगरो |
अबकी बेर मोही पार उतारो, नहि पन जात तरो ||
.....
एक बार स्वामी विवेकानंद खेतड़ी से जयपुर आए। खेतड़ी नरेश उन्हें विदा करने के लिए जयपुर तक साथ आए थे। वहीं संध्या के समय मनोरंजक नृत्य और गायन का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए एक ख्यात नर्तकी को आमंत्रित किया गया था। जब स्वामी जी से इस आयोजन में सम्मिलित होने का आग्रह किया गया तो उन्होंने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नृत्य-गायन में संन्यासी का उपस्थित रहना अनुचित है।
जब नर्तकी को यह ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुखी हो गई। उसे लगा कि क्या वह इतनी घृणा की पात्र है कि संन्यासी उसकी उपस्थिति में कुछ देर भी नहीं बैठ सकते? नर्तकी ने दर्द भरे स्वर में सूरदास का यह भक्ति गीत गाया, ‘‘प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो, समदर्शी है नाम तिहारो...।’’
भजन के बोल जब स्वामी जी के कानों में पड़े तो वह नर्तकी की वेदना को समझ गए। बाद में उन्होंने नर्तकी से क्षमा याचना की। इस घटना के बाद से स्वामी जी की दृष्टि में समत्व भाव आ गया। उसके बाद एक बार जब किसी ने दक्षिणेश्वर तीर्थ के महोत्सव में वेश्याओं के जाने पर आपत्ति की तो स्वामी जी ने कहा, ‘‘वेश्याएं यदि दक्षिणेश्वर तीर्थ में न जा सकें तो कहां जाएंगी।’’
...
mira
"विनती सुनिए कृष्णा हमारी बिनती सुनिए कृष्णा हमारी
विनती सुनिए नाथ हमारी
हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी
मोर मुकुट पीतांबर धारी बिनती सुनिए नाथ हमारी
जनम जनम की लगी लगन है साक्षी तारो भरा गगन है
गिन गिन स्वाश आस कहती है आएँगे श्री कृष्ण मुरारी
विनती सुनिए नाथ हमारी
सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन
हे भव बाधा बिपति बिमोचन
स्वागत का अधिकार दीजिए शरणागत है नयन पुजारी
विनती सुनिए नाथ हमारी हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी
और कहूं क्या अंतर्यामी तन मन धन प्राणो के स्वामी
करुणाकर आकर ये कहिए स्वीकारी विनती स्वीकारी
विनती सुनिए कृष्णा हमारी हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी
विनती सुनिए नाथ हमारी बिनती सुनिए नाथ हमारी
हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी हृदयष्वर हरी हृदाया बिहारी
मोर मुकुट पीतांबर धारी विनती सुनिए नाथ हमारी
विनती सुनिए कृष्णा हमारी बिनती सुनिए कृष्णा हमारी
विनती सुनिए नाथ हमारी"
.............
By my life I will not let you go
by Janabai
English version by Sarah Sellergren
Original Language Marathi
I caught the thief of Pandhari
by tying a rope around his neck.
I made my heart the prison cell
and locked him up inside.
I bound him firmly with the Word,
I fettered his holy feet,
I thrashed him, whipped him
with the word so'ham
while Vitthal complained bitterly.
Sorry, O Lord,
says Jani,
by my life I will not let you go.
..
Cast off all shame
by Janabai
English version by Vilas Sarang
Original Language Marathi
Cast off all shame,
and sell yourself
in the marketplace;
then alone
can you hope
to reach the Lord.
Cymbals in hand,
a veena upon my shoulder,
I go about;
who dares to stop me?
The pallav of my sari
falls away (A scandal!);
yet will I enter
the crowded marketplace
without a thought.
Jani says, My Lord,
I have become a slut
to reach Your home.
..
You leave your greatness behind you
by Janabai
English version by Sarah Sellergren
Original Language Marathi
Jani has had enough of samsara,
but how will I repay my debt?
You leave your greatness behind you
to grind and pound with me.
O Lord you become a woman
washing me and my soiled clothes,
proudly you carry the water
and gather dung with your own two hands.
O Lord, I want
a place at your feet,
says Jani, Namdev's dasi.
..
You must accept those who surrender to you
by Janabai
English version by Sarah Sellergren
Original Language Marathi
If the Ganga flows to the ocean
and the ocean turns her away,
tell me, O Vitthal,
who would hear her complaint?
Can the river reject its fish?
Can the mother spurn her child?
Jan says,
Lord,
you must accept those
who surrender to you.
..
mai to prem diwani ho gayi re
mujhe dunia se kya kam re
mera shyam ki jogan nam
mai to prem diwani ho gayi re
mujhe dunia se kya kam re
mera shyam ki jogan nam
man panchi si ghayal take
man panchi si ghayal take
janam janam ki pyasi aankhe
dhundh rahi shyam se
mera shyam ki jogan nam
mai to prem diwani ho gayi re
mujhe dunia se kya kam re
mera shyam ki jogan nam
sans ke tar me bas gaya sai
sans ke tar me bas gaya sai
amar milan ki jyot jagayi
alakh japu yahi kam re
mera shyam ki jogan nam
mai to prem diwani ho gayi re
mujhe dunia se kya kam re
mera shyam ki jogan nam
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